Friday, June 02, 2006

दीपाली आसमानी...

वो सुबह की कहानी, आज मेरी जुबानी।
हर लम्हा जो गुजरा, बस बारिश का पानी।


सुनहरे आज सब पत्ते, हवाएं सर्द सी,
कहां से बदला मौसम, और आई जवानी।

एक नज़र का मिलना, झुकना, और तरसना,
अदाएं भी है रुख पर बन के दीवानी।


जुस्तजू और जूनूं, दोनों ऐसे है दिल में,
जैसे मार ही डाले, गर करे आनाकानी।

मिले भी तो कैसे, दूरियाँ है दिल में,
मिटा भी गर डाले, हो जाये परेशानी।

क्या लगता है तुमको, पढ़ के यह कहानी,
सच है, झूठ, या है सुबह आसमानी।

निशांत NYSH

1 comment:

Anonymous said...

gr8 yaar...... rocking..
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