आज पुरे आठ दशक गुजर चुके हैं, पर भूल पाना नामुमकिन सा है उस शख्स को, जो दूसरा नाम था जोश और जूनून का, शहीद और आशिक का, तूफ़ान और इन्कलाब का... आज फिर से कुछ लिखा है, ज़रा नज़र कर लो...
भारत माँ को भगत इक मिला, दिल में जिसके उठा जलजला,
नस-नस में भरकर इन्कलाब, हम सब को आजाद कर चला,
हसरतों में थी तूफानी जुस्तजू, आँखों में था बस जूनुं ही जूनुं,
हर कदम बस एक ही डगर, किसकी हिम्मत तूफां रोके भला,
दीवानों को खिंच लायी थी आंधी, कुछ चलते रहे राह-ए-गाँधी,
मंजिल एक ही थी आखिर, चढी थी सर पर सबके इक बला,
गर्म खून और सर चढ़ी जवानी, अब छोड़ चले घर, दे कुर्बानी,
फाँसी देकर तुम्हें भगत सिंह, कर न सके कम, तेरा हौसला,
हे इलाही, भले मिली जुदाई, पर जिंदगी कुछ तो काम आई,
आज़ाद है अब अपना वतन, तुमने रखा था शुरू सिलसिला,
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