Saturday, March 22, 2008

फाग धून गाए मन...

फागुन धून बसंत जो गाये, रंगों का सावन घिर आये,
नाचे मन पपीहा बन के, फाग राग संग ढपली गाये.

होली दी हुड़दंग निराली, मद्दमस्त करे भांग दी प्याली,
राजाणे* की घिंदर के रसिया, रंगों में सबको नहलाये.

घुमर में जब डोले तन, संग जो नाचे अपना सजन,
गुलाल सुर्ख गालों पर चमके, भूल के सारे अपने पराये.

धूम मची है मोहल्ले में आज, छोड़ दी सबने शर्म लाज,
ऐसा छेड़ा है फाग साज, कि अब तो रहा न जाये.

तो चलो... हम भी निकल ही रहे हैं अब...

होली की शुभकामनाएं...

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