Friday, June 01, 2007

नींद उडन छु...

ख़्वाब में रात तुम आये, चाहा लिखकर तुम्हें बतायें।
था छोटा सा एक घरोंदा, तुम हमसे मिलने को आये।

पूछा क्यूं हैं हम यूं तनहा, क्यूं आते हैं पीछे पीछे,
जवाब ना दे सके हम, सोचा हाथ दोस्ती का ही बढायें।

तुमने हाथों को फिर पकड़कर, गालों पे हाथ रखकर,
देखा था इस क़दर, कि नज़र हम तो मिल ना पाये।

करीब इतने थे आप बैठे, सोचा बाँहों में तुम को भर लें,
इतने में नींद उडन-छु, सिर्फ रह गए आंखों में साये।

सुबह को तुम को सोचा, आज याद किये तारीख भी,
दो बरस हैं आज बीते, जब पहली दफा तुम आंखों में आये।

चाहते थे तुमसे मिलेंगे, पानी को ख़्वाब की हकीकत,
सरे शाम सोचते रहे ये, कोई बहाना ही काश मिल जाये।

पूछे भी दोस्तो से, क्या कह के मिलेंगे अब तुमसे,
रहे यूं ही कशमकश में, कोई हल भी ना ढूँढ पाये।

इतने में शब भर आई, दिल ने खलभली सी मचाई,
अब जाओ भी मिलने को, शायद ख़्वाब ही सच हो जाये।

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जब पहुंचे गलियों में तेरी, थामा हमने अपने दिल को,
देखा था सजा एक मंडप, लगा तुम हो रहे हो पराये।

इश्क न सही हमें तुमसे, पर जूनून तो बन गए हो,
रातों को जागकर हमने, चन्द आंसू तेरे लिए बहाये।

डसती है अब तनहाई, मुलाकात कभी हो ना पायी,
मगर वही हैं हम, जो तेरी झूठ से हज़ार गालियाँ खाये।

रह गयी याद तेरी आवाज़, जिसमे है सूर, बिना साज़,
कम तो वो भी ना था, जब तुम जोरों से चिल्लाये।

बहुत मचल रहे थे तुम, हम तो खडे थे यूं ही गुमसुम,
दिल ने भी कहा न जा अब, कहीं आप चली ना जायें।

रात भी ज्यों-त्यों गुजरी, न कर सके हम सबुरी,
दिल को भी हमने अपने, लोरी गा मुश्किल से सुलाये।

सुबह को जब हम जागे, सोचा मिलने को अब तो भागें,
पर थी वही मुश्किल, कि शक्ल तुम्हें अब कैसे दिखायें।

लगता है डर हमें तुमसे, तेरी खामोशी और तेरे ढंग से,
तलब भी ना छोड़ सके तेरी, तमन्नाओं में ही बस नहाये।

न आएगा खिज़ां का मौसम, कहता रहा दिल हरदम,
जब गए मिलने को हम, तो दिल को बहुत समझाये।

थी दोपहर कि धुप हरी, न देख सके तुम्हें सुन्दर परी,
पर यादें तेरी हमको, आवाज़ देकर अक्सर बुलाये।

तसल्ली हुई मेरे दिल को तब, जब सुना मेरे रब ने सब,
जब आ रही थी तुम, और हवाओं ने तेरे बाल उडाये।

एक मुलाक़ात की हम चाहतें हैं सौगात, करनी है आपसे दिल की बात,
दिलचस्प होगी ये कहानी, मिलने के सिलसिले ग़र आप बढायें।

चाहता हूँ समेट दूँ अपनी कहानी, कलम से कागज में स्याही की जुबानी,
अच्छा होगा आप इसकी कतरनों को, कचरे में ना मिलायें।

निशांत

4 comments:

Sagar Chand Nahar said...

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Anonymous said...

Kamaal Hai... Kaafi Lambi Kahani Hai Aapki...

सम्पादक said...

Hi
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Udan Tashtari said...

कहाँ हो भई आजकल. दिखते ही नहीं. :)