Friday, September 15, 2006

शौक और हम...

हम तो उँची उड़ानों के शौकीन थे,
रास्ते भी ऐसे मिले जो मुमकिन थे।

थे गजब के मदहोश जवानी के दिन,
किस्से भी थे कई ऐसे जो नमकीन थे।

क्या क्या ना किया जुस्तजू के लिए,
ख़्वाब आरजू रास्ते सारे शाहीन थे।

चाहते थे करीबी उस खुदा से हम,
दूर बडे ज़माने से हम लेकिन थे।

थे खुशमिजाज ख़ूब हम भी दिल तले,
दुनिया के वास्ते फिर भी हम कमसिन थे।

NYSH निशांत

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