Friday, September 28, 2007

जन्मदिन मुबारकां सरदार...



शहीद-ए-आजम, तेरे दम-ख़म, इन्कलाब जिंदा रहा...
तुम थे अक्सर हर कदम पे, जैसे थी आब-ओ-हवा...

दीवानों को रोक पाती, कहाँ थी ऐसी जंजीरें...
तेरे ख़्वाब, तेरी मंजिलें, सब में थी अहल-ए-वफ़ा...

महफिल में तू नहीं फिर भी ये मेले कम नहीं होंगे...
तुम अक्सर याद आओगे, ना कम होगी तेरी अदा...

सौ बरस के नौजवां तुम और फौलादी है तेरा जूनून...
सितम थे कैसे-कैसे, और तुमने हँस हँस के सहा...

वतन के जर्रे-जर्रे से, तुम जैसे सरफिरे जन्में...
हिन्द के वास्ते पल में, जो कर डाले खुद को फना...



निशांत