Friday, August 04, 2006

इश्क...

इश्क निगोड़ा, इश्क बेदर्दी, इश्क कमीना, कम्बख्त इश्क।
तुम कहते हो ये सब हमसे, हम कहतें हैं जन्नत इश्क।

रूह से दिल, दिल से दर्द, दर्द से रिश्ता, रिश्तों से मंज़िल,
मिल जाये तो क्या कहिये, बिन मांगे मिले वो मन्नत इश्क।

खूब है उनके दर पे मुसाफिर, मिले ना सबसे आ कर जाकिर,
डूबा है जो अपनी धुन में, उसका तो है ज़ीन्नत इश्क।

मिला है जिसको इश्क जहाँ का, क्यूं ना करे वो तुमसे बयां,
उसको पूछो क्या है पाया, वो कहता अनगिनत इश्क।

क्यूं कोई दिल पे राज करे, क्यूं कोई दिल में साज भरे,
मुझ से पूछो क्या मैनें किया, जब हुआ मेरी सल्तनत इश्क।

NYSH निशांत

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