Friday, December 15, 2006

बाक़ी अरमान...

दरिया किनारे घर ना बसाओ, दरिया में अभी जान बाक़ी है।
ये तो एहसान था थोडा सा, अभी तो तूफान बाक़ी है।

सब बैचेन हैं आजकल यहाँ, खोये-खोये से रहतें हैं,
कुछ दिन घर छोड़ चले आओ, जमीं-ओ-आसमान बाक़ी है।


मौसम जरुर बदल गया है यहाँ, मगर पहली बार नहीं,
हमारे पास अब भी पिछली यादों का एक मकान बाक़ी है।

सिर्फ तुम्हारी ही कमी खल रही है इस मौसम-ए-बारिश में,
आओ तुम हमारे पास मिलने कभी, यही अरमान बाक़ी है।

NYSH निशांत

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