बुलंद तेरा इन्कलाब है...
जिसमें आग है... छुपा साज़ है... कई राग है...-3
बुलंद तेरा इन्कलाब है...
तेरी राह पर डगमगाते कदम,
फिर भी चल रहे दो-चार हम,
धडकनों में बसा तेरा ही जुनूं,
हम कहाँ है अब किसी से कम,
लहू में मेरे वही आग है, जो आफताब ही आफताब है...
बुलंद तेरा इन्कलाब है...
... ... ... ...
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