Friday, September 22, 2006

हवाएं...

ये मदहोश हवाएं अकसर आती क्यूं है,
तन्हाई में इतना हमें लुभाती क्यूं है।

जब भी बैठे होते हैं खामोश अकेले,
हमें आवाज़ दे देकर बुलाती क्यूं है।

ना ही किसी से वास्ता, ना ही किसी से वैर,
फिर भी ना जाने रिश्ता जज्बाती क्यूं है।

NYSH निशांत

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