Friday, January 12, 2007

चांदनी बार...

तमाम शब जागते थे हम आपके इंतज़ार में।
आप भी मिलने आते थे हमसे चांदनी बार में।
निगाहें हमारी ढूँढती है अब भी सिर्फ आप ही को,
कभी निकलिये तो सही मिलने को बाहर बाज़ार में।
किसी की इजाजत की जरुरत नहीं है अब यहाँ,
सब ने फैसला किया है यह दरबार में।
रिवायतों को तोड़ो, जज्बातों को भी छोडो,
हम दोनों है अब, एक दूजे के प्यार में।
NYSH निशांत

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