Friday, November 03, 2006

एक जाम...

हसीं होगी मेरी सुबह - ओ - शाम।
जब हाथों में होगी, मेरे एक जाम।

मैं उसे चूम कर पी लूँगा,
लेकर अपनी जान-ए-मन का नाम।

यूं ही हो जाऊंगा मशहूर मैं तो,
पीते - पीते हर एक शाम।

नहीं पीता था मैं कभी भी,
जब तक दिल में बसा था राम।

अब इसीलिये पीता हूँ यारों,
उसी ने मुझे दिया है इलज़ाम।

ना जाने अब क्या होगा मेरा,
कोई तो बताये मुझे अंजाम।

NYSH निशांत

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