Friday, June 23, 2006

यादें...

तेरी हर बात दिल को इस कदर भाती क्यूं है।
रातों में तेरी परछाई हमें डराती क्यूं है।

भड़क जाती है आग सीने में एक आहट से ही,
हवा जब चले है तो आवाज़ सुनाती क्यूं है।

बारीश का मौसम प्यार का मौसम है ना,
तो फिर भीगो कर तेरी याद दिलाती क्यूं है।

बसंत जब भी आये बहार साथ साथ लाये,
लेकिन पतझड़ सारे पत्ते उड़ाती क्यूं है।

गरमी से बदन जलता है जब भी हमारा,
तेरी फूंक की हवा हमें सुलाती क्यूं है।

सावन के झूले और कुल्फी चाट के ठेले,
मेले की रोनक मुझे सताती क्यूं है।

बात जब भी चले है किसी सरफ़रोश की,
बातों में तेरी बात "NYSH" आती क्यूं है।

NYSH निशांत

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