छ: बरसों की लम्बी जुदाई, दिल के अरमां मार न पाई,
हिज्र-वस्ल के सारे मौसम, गुजरे और असीरी पाई,
हासिले-फन से मिली मुफलिसी, बाज़ार में बदनाम हुए,
दिल में तेरा ख्वाब बसाकर, तबाही हमने गले लगाई,
गुल महके थे उजडे चमन में, हम भी थे कुछ ऐसे हसन,
सफर मेरा अब भी है तन्हा, सुना, मैंने आवाज़ लगाई,
बे-अदब इस दुनिया जैसे, फतवा ना ताकीद करो,
बिस्मिल सीना करके क्यूँ, मोहब्बत को देती हो दुहाई,
तालिब का पुरजोश-ओ-जुनूं, हर लहजे में तुम पाओगे,
तेरे बाद यही साथ रहा बस, इसी से हमने करी कमाई,
हिज्र-वस्ल के सारे मौसम, गुजरे और असीरी पाई,
हासिले-फन से मिली मुफलिसी, बाज़ार में बदनाम हुए,
दिल में तेरा ख्वाब बसाकर, तबाही हमने गले लगाई,
गुल महके थे उजडे चमन में, हम भी थे कुछ ऐसे हसन,
सफर मेरा अब भी है तन्हा, सुना, मैंने आवाज़ लगाई,
बे-अदब इस दुनिया जैसे, फतवा ना ताकीद करो,
बिस्मिल सीना करके क्यूँ, मोहब्बत को देती हो दुहाई,
तालिब का पुरजोश-ओ-जुनूं, हर लहजे में तुम पाओगे,
तेरे बाद यही साथ रहा बस, इसी से हमने करी कमाई,
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