Friday, September 01, 2006

इश्तेहार...

आज घूम के आये हम सारा बाज़ार,
मगर ना मिला वो हमारा बीमार।


सब कहते थे गुजरा है अभी इधर से,
पहने हुए कुरता और चुडिदार सलवार।

सुना है नहीं आएगा फिर पलट कर वो,
जिसके आने के लगायें हैं हम आसार।

मौसम की पहली बारिश तक काश रुकता,
देख पाते काश हम उसे आख़िरी बार।

अब नहीं आएगा इतना जवान मौसम,
प्यासी ही रह गयी क्यूं हमारी अबसार।

अरमान है बस वो सदा खुश रहे,
जब भी मिले जरुर करे हमारा ऐतबार।

उसके फ़न की तारीफ़ कहां से हो शुरू,
लेकिन हम तो खूब थे अव्वल अय्यार।

बात थी हमारे बाज़ार जा आने की,
और सुना रहे हैं एक किस्सा बार बार।

चलो काफी है इतना उस के लिए शायद,
छपा सकतें है इस से कई इश्तेहार।

अगर मिल जाये कहीं तो जरुर कह दें,
कि अब भी बरकरार है वही प्यार।

वही जूस्तजू, वही करार,
वही दीवानगी, वही इंतज़ार,
वही तमन्ना, वही खुमार,

बस नहीं है तो सिर्फ और सिर्फ... आपका प्यार बेशुमार...

NYSH निशांत

1 comment:

Anonymous said...

bahut khoob...nishant, kya baat aur kya andaaz hai....bahut khoob...

keep it up

Shaubhik...