फकत एक दिन गर मिला होता,
दूर सारा शिकवा-गिला होता।
वो भी नहीं रहते अछूते से,
गर साथ हमारे इब्तिला होता।
हर रोज़ की बात तो नहीं लेकिन,
सावन में इक गुलाब खिला होता।
सब चल रहे थे साथ-साथ मेरे,
गर आप आते तो काफिला होता।
हम भी होते उन लोगों में शायद,
अजीजों से आपके भी सिलसिला होता।
फकत एक दिन गर मिला होता...
NYSH निशांत
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